मेरा धैर्य मेरे बाज़ुओं मैं नहीं
मेरे दिल और दिमाग के सामंजस्य के बीच
फंसा हुआ एक दोराहे पे सा खड़ा रहता है
कभी संभालता कभी लड़खड़ाता
कभी बेबस तो कभी मज़बूत
बेचारा सा मेरा धैर्य
अपने सफर को मंज़िल समझने
की आदत डाल चुका है
कभी बात करता राहगीरों से
कभी अकेला सा रहता है
कभी गुमशुम तो कभी उल्लास लिए रहता है